हे मेरे कृष्णा,
मेरा जीवन व्यर्थ बरबाद हो गया।पृथ्वी पर आकर मैंने तेरा आजतक कौनसा कार्य किया ?
ना कोई धर्म कार्य हुवा,ना अधर्म का नाश हुवा,ना ही धर्म की पुनर्स्थापना हुई।ना कोई ऐसा प्रयास भी हुवा।
अब जब भी तेरे पास वापिस स्वर्ग में आऊंगा तो तुझे क्या मुंह दिखाऊंगा ?
खाली हाथ गया और…
खाली हाथ वापिस लौट आया।
हे भगवान,
यह कैसा भयंकर प्रारब्ध भोग है ?
यहाँ सत्य हारता है और असत्य जीतता है।
यह कैसा तेरा खेल है मेरे प्रभु ?
राजे शिवाजी, राजे संभाजी,महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, गुरू गोविंद सिंह, सावरकर, सुभाषचंद्र बोस, करपात्री महाराज, जैसे अनेक महात्माओं को तुने आखिर इतना भयंकर दुखदर्द क्यों दिया ?
इतनी भयंकर परेशानियां, तडप,यातनाएं तुने क्यों दी भगवान ?
आखिर क्यों ?
यह कैसा अजीब खेला है तेरा दयाधन ?
चाहे साकार में हो या निराकार में।
अगर मेरी भक्ति, प्रेम, श्रद्धा, निष्ठा, इमान सच्चा है…
तो…
तुझे उत्तर तो देना ही होगा।
मेरे आत्मा को शांत करना ही होगा।
और यह तेरा दाईत्व भी है।
तभी तु दयाधन, दयालु, प्रभु परमात्मा कहने के लिए योग्य होगा।
तभी, तेरा भगवत् गीता का वचन सही होगा।
अन्यथा…???
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन