*प्रधानमंत्री मोदिजी और* *मोदिविरोधी हिंदू !!*
✍️ २४९३
*विनोदकुमार महाजन*
( *प्रखर राष्ट्रप्रेमी पत्रकार )*
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*साथीयों ,*
आज का लेख का विषय प्रखर राष्ट्रप्रेम पर आधारित है !
संपूर्ण देश में और संपूर्ण विश्व में , मोदिजी जैसे महानायक और विश्वपुरूष पर प्रेम करनेवालों पर आधारित!
*और…?*
विनावजह नफरत फैलाने वालों के लिए भी !
संपूर्ण देश में और विश्व में भी मोदिप्रेमियों की संख्या करोडों में है ! इसी लिए मोदिजी की लोकप्रियता बहुत ही उंचाईयों तक पहुंच गई है !
अनेक हिंदू मोदिजी के कार्यों से आनंदित है ! और मोदिजी के शब्दों के लिए मरमिटने वालों हिंदुओं की संख्या भी अनगिनत है !
मगर आज के इस विशेष लेख में देखते है की , मोदिजी जैसे ईश्वर तूल्य महानायक से कुछ हिंदुही नफरत क्यों करते है ?
*मोदिभक्तों को अंधभक्त भी क्यों* *कहते है ?*
ईश्वर ने सृष्टि की रचना जब की तब सुर और असुर दोनों विरूद्ध शक्तियां भी निर्माण की !
और युगों युगों से लेकर , युगों युगों तक चलनेवाला दोनों शक्तियों का यह संघर्ष अविरत चलता आय है ! और चलता भी रहेगा !
इसीलिए राम के शत्रू भी हमारे अपने ही थे !
परमात्मा श्रीकृष्ण के शत्रू भी हमारे अपने ही थे !
राजा शिवछत्रपती जैसे महानायक के शत्रू भी हमारे अपने ही थे !
और मोदिजी के भी शत्रू हमारे अपने ही है !
बाहरी शत्रुओं से लडना आसान होता है ! मगर जब हमारे अपने ही शत्रू हो तो उनके साथ लडने में बडी दिक्कत होती है !
और हमारी अंदरूनी शक्ती भी स्वकीयों से लडने के लिए कमजोर तो ही जाती है !
*अपनों से ही लडें तो कैसे लडें ?*
मगर सिध्दांतों की लडाई जब हमारे अपनों से होती है तब आत्मक्लेश तो होते ही है ! और मजबुरन उनके साथ भी सिध्दांतों की जीत के लिए की लडाई लडनी ही पडती है !
*भगवतगीता भी यही कहती है !*
स्वकीयों से लडने के लिए अर्जुन जब हतबल था , तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता सुनाई थी !
*मतलब साफ है….?*
हम हमारे अपनों का अखंड कल्याण तो चाहते है , मगर…
हमारे अपने ही हमारी आत्मीय शुध्दता और दिव्यप्रेम समझने के बजाए , हमें ही मारने मिटाने की कोशिश करते है , लगातार हमें ही उध्दस्त करने का दिनरात प्रयास करते है , चारों ओर से हमें मुसिबतों में फँसाने की रणनीती बनाते है , हमारे बदनामीयों का चारो तरफ से आग के जैसा प्रयास करते है…
*तब…* ?
मजबुरन हमें भी हमारे ही हितशत्रुओं का मजबुरन विरोध तो करना ही पडता है !
और इसी प्रकार से साम दाम दंड भेद की लडाई धिरे धिरे उग्र स्वरूप धारण करने लगती है !
*और…?*
उसी समय महाभारत आरंभ हो जाता है !
अब मोदिजी की मन:स्थिती को समझने का प्रयास करते है !
जब मोदिजी हमारे अपने ही हिंदू साथीयों के अखंड कल्याण के लिए , संस्कृती को बचाने के लिए ,दिनरात अथक प्रयास करते है…
*और…?*
दुर्देव से हमारे हिंदू ही मोदिजी का उग्र विरोध करते है…
*तब…?*
मोदिजी की आत्मा कितनी तडपती होगी ?
उनके अंतरात्मा में जरा परकाया प्रवेश करके तो देख लो…?
*यही आवाज आयेगी…*
अरे ,
जिनके अखंड कल्याण के लिए मैं अथक प्रयास कर रहा हूं , जिनकी भावी पिढीयां संपूर्ण सुरक्षित रहे , इसी लिए अनेक यशस्वी योजनाएं बना रहा हूं ,
दिनरात एक कर रहा हूं…?
*वही मेरा विरोध कर रहे है ??*
*आश्चर्य है ना साथीयों ?*
सचमुच में आश्चर्य ही है !!
अनेक सदियों की गुलामी की मानसिकता हटाने के लिए , मोदिजी प्रधानमंत्री के बजाए , प्रधानसेवक बनकर अथक प्रयास कर रहे है ! विश्व पटल पर सनातन धर्म की श्रेष्ठता बढा रहे है…
ऐसे समय में उनके पिछे सारी शक्ती खडी करने के बजाए ?
मोदिजी को ही समाप्त करने की रणनीती बना रहे है ?
*हमारे ही हिंदू ?*
बना रहे है तो ??
हे *भगवान…*
ऐसे महापापीयों को तु भी कैसे बचायेगा ? और क्यों बचायेगा ?
जिन्हे आत्मकल्याण भी नहीं समझता है , ऐसे हमारे ही अपनों का अंतिम उत्तर भी क्या है ?
ऐसे मुर्ख हिंदुओं को कौन समझाएगा ?
उल्टा निजी स्वार्थ के लिए ,
सत्ता और संपत्ती के लिए ,
जब हमारे ही जयचंद हमपर , सत्य पर चौतरफा आक्रमण करते है…
*और…?*
सत्य को जमीन में गाडने के लिए , सत्य को ही नेस्तनाबूत करने के लिए , चौबिसों घंटे प्रयत्नशील रहते है…
हमें ही उल्टा ” *व्हिलन “*
*खलनायक*
साबीत करने की दिनरात कोशिश करते रहते है तो…?
आखिर ऐसी भयंकर समस्या का ,
बिमारी का और जालिम जहर का इलाज भी क्या है ??
ईश्वरी सिध्दांतों को समाप्त करने के लिए , आदर्श संस्कृती को नेस्तनाबूत करने के लिए ,
हमारे ही अपने जब विकृत संस्कृतियों का , राक्षसी सिध्दातों का , हैवानियत का , आसुरिक संपत्तीयों का , हाहाकारी और उन्मादी शक्तियों का , विकृत समाज और लोगों का साथ देते है…?
*तब…?*
ऐसे ही हमारे अपनों का जमकर विरोध तो करना ही चाहिए !
ऐसे विनाशकारी लोगों के विरुद्ध चौतरफा शक्तिसंपन्न बनकर *मोर्चा तो खोलना ही चाहिए !*
*क्योंकि जब…*
हमारे अपने ही
हिंदू
*संस्कृति भंजन वालों का*
साथ देते है तो…? ऐसे लोगों का
शक्तिशाली संगठित शक्ति द्वारा जमकर विरोध तो करना ही चाहिए !
*आखिर भगवान श्रीकृष्ण और* *भगवतगीता भी यही* *सिखाती है !*
*इसीलिए हे अर्जुन…* ( मोदिभक्तों )
मछली की केवल आँख देखकर ही बाण चलाना !
*तभी सत्य जीतेगा !*
*और ईश्वरी सिध्दातों की रक्षा भी* *होगी !*
*नहीं तो…?*
हमारे अपने ही हमें सदा के लिए जमीन में गाड देंगे !
सावधान !
*त्रिवार सावधान !!*
*याद रखिए ,*
मोदिजी की जीत….?
हमारी अपनी जीत है !!
प्रणाम !
हरी ओम् !!
*मोदिराज जींदाबाद !*
*जय श्रीकृष्ण !!*
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