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प्रयत्ने वाळूचे कण रगडिता…

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प्रयत्ने वाळूचे कण रगडिता तेलही गळे !!!
✍️ २१४२

विनोदकुमार महाजन
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मराठी में एक कहावत है,
” प्रयत्ने वाळूचे कण रगडिता तेलही गळे . ”
मतलब साफ है = प्रयास इतना भरकम किजिए की,बालू के कण घिसेंगे तो भी तेल निकलेगा !

चाहे नशीब साथ हो न हो,परिस्थिती अनुकूल हो न हो,परिस्थिती कितनी भी गंभीर हो,परिस्थिती कितनी भी प्रतिकूल हो,या विपरीत हो,अनेक मुसिबतों के हजारों पर्बत सामने खडे हो ! या फिर जहर के अनेक सागर भी पार करने पडे,कोई साथ देनेवाला भी हो या ना हो,हाथ में धन ना हो,शत्रुपिडा भी भयंकर हो,इंन्सान रूपी भयंकर जहरीले साँपों ने भी रास्ता रोक लिया हो या फिर कर्मगती के भयंकर फेरे भी हो,दस दिशाओं पर आप अकेले ही लड रहे हो,ईश्वर भी कितनी भी भयंकर कठोर सत्वपरीक्षा अथवा अग्नीपरीक्षा ले रहा हो, दिनरात आप मुसीबतों की भयंकर अग्नि में जलते हो,आत्मक्लेश – अपमान का भी सामना करना हो,अथवा अन्य भी कोई कारण हो…

तो भी आप जीवन की लडाई जीत ही सकते हो !
मगर इसके लिए चाहिए दुर्दम्य आत्मविश्वास !
दुर्दम्य इच्छाशक्ती !
दुर्दम्य प्रयत्नवाद !
दिनरात मेहनत, प्रयास करने की मन की तैयारी !
अथक प्रयत्नवादी रहने की मानसिकता !
उच्च कोटी का ध्येयवाद !
बिना थके हारे ध्येयपूर्ती के लिए प्रयास की जरूरत !

तो आपकी जीत पक्की होगी ही होगी !
होकर रहेगी !

कैसे ?
अगर आपके साथ सद्गुरू का आशिर्वाद, निरंतर मार्गदर्शन, सद्गुरू का मंत्र और सद्गुरू ने ही जाप के लिए दी हुई एक तुलसी की माला हो…
और आप दिनरात सुधबुध खोकर, भूकप्यास भूलकर,मोहमई दुनिया के – मतलबी , रिश्तेनाते तोडकर, मौन होकर, एकांत में रहकर, गुरुमंत्र का बडे विश्वास से,श्रद्धा से निरंतर जाप करते है…
तो…???
आपके सद्गुरू आपका जीवन ही बदल देंगे !
साक्षात ईश्वर को भी सामने खडा कर देंगे !

जी हाँ दोस्तों !

मैं दावे के साथ यह बात कहता हूं !
और यह बात मैंने खुद ने सप्रमाण सिध्द भी की हुई है !
मेरे सद्गुरू आण्णा की कृपा के कारण आज अपेक्षित सभी परीणाम मेरे हाथों में है !
बस्स्…अब हर क्षेत्र में आगे बढते ही रहना है !
मेरे सद्गुरु की कृपा से मुझे जो चाहिए था, वह सबकुछ मैंने हासिल किया है !

आप भी सद्गुरु के शरण में जाकर, सद्गुरु के पवित्र चरणकमलों पर अपना सर्वस्व, अपना जीवन समर्पित करके,अहंकार शून्य बनकर, उच्च कोटि की निरंतर साधना करते रहेंगे, तो…
आपको जो चाहिए वह सबकुछ हासिल करके ही रहेंगे !

आत्मोध्दार भी !
विश्वकल्याण भी !!
विश्वोध्दार भी !!!

और इसीलिए मेरे सद्गुरु ही मुझे हमेशा एक बात कहते थे,
” प्रयत्ने वाळूचे कण रगडिता तेलही गळे. ”
और आजतक मैंने जीवन भर बालू ही रगडी है ! और आज मैं मेरे आँखों के सामने से यह अद्भुत परिणाम और चमत्कार भी देख रहा हूं !
बालू के कणों से तेल सचमुच में निकल ही रहा है !

सब सद्गुरु की कृपा !!!

मेरे सद्गुरू कृपा से, अनेक देवीदेवताओं का,सिध्द पुरूषों का आशिर्वाद तथा वरदहस्त मुझे मिल गया है !
मेरा तेज:पुंज,शक्तिशाली, यशस्वी जीवन आरंभ हो गया है !

मगर जो भी मिला है वह सबकुछ मेरे सद्गुरु का और ईश्वर का ही प्रसाद है ! मैं तो शून्य हूं !
एक निमित्त मात्र हूं !
पंचमहाभूतों के छोटेसे देह में बसा हूवा…” आत्माराम हूं !!!”

कर्ता करवीता सबकुछ मेरे परम दयालु, परम कृपालु मेरे सद्गुरु और मेरा…हम सभी का दयालु,परमेश्वर !
ईश्वर !!!

सद्गुरु के और ईश्वर के संपूर्ण शरण में जाकर जीवन का यशस्वी सफर आरंभ करते है !

हरी ओम्

🙏🙏🙏🕉🚩

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