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सामाजिक सौहार्दता : – एक मनोचिकित्सक विश्लेषण

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सामाजिक सौहार्द : – एक *मनोचिकित्सक* विश्लेषण
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( सभी के लिए पढना अनिवार्य तथा अत्यावश्यक )
सभी राष्ट्रप्रेमीयों को,देशप्रेमियों को यह लेख पढना और गहन चिंतन,मनन, अध्ययन ,अध्यापन द्वारा इसपर अमल करना जरूरी है।
राजनैतिक परिवर्तन के साथ सामाजिक परिवर्तन के अनेक मुद्दों पर इसपर मंथन किया गया है।
ग्रामस्वच्छता,राजनैतिक स्वच्छता के साथ साथ सामाजिक स्वच्छता अभियान और मन की मैल उतारकर, सभी को ईश्वराधिष्टीत बनाना भी अब अनिवार्य बन गया है।अपेक्षा है प्रधानमंत्री जी से लेकर… सभी मुख्यमंत्रियों द्वारा इसपर सहयोग प्राप्त हो,ऐसी एक आशा है।

लेख लंबा भी हो सकता है।आखिर तक पढने का कष्ट जरूर उठायेंगे, ऐसी आशा करता हुं।

वैचारिक मतभेद अथवा तार्किक मतभेद भी हो सकते है।मगर आशा है की,समाज के सभी घटकों के उत्कर्ष का यह विषय होने के नाते…
सामाजिक सौहार्द स्थापना हेतु सभी के संपूर्ण सहयोग की भी अपेक्षा करता हुं।
यह एक उच्चस्तरीय मनोवैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक विषयों पर आधारित सर्वोपयोगी, संतुलित विश्लेषण करने का प्रयास है।
शब्दों की क्लिष्टता टालकर, सभी के समझ में आयेगी, ऐसी आसान भाषा का प्रयोग करने का प्रयास है।

सामाजिक सौहार्द स्थापित करने के लिए…
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की,जातीय अथवा धार्मिक उद्वेग पैदा ना हो,इसीलिए सभी को समान रूप से ,भेदभाव रहित समाज निर्माण में प्राथमिकता देनेपर हम सभी को विशेष ध्यान देना होगा।
राजनैतिक परिवर्तन ,जो अभी…बहुत सालों बाद, हुवा है,जिसके द्वारा समाज एकसंध बनाने के लिए विशेष प्रयास की और तीव्र इच्छाशक्ति की भी जरूरत होती है।
और हमारे संन्माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा यह सभी विशेष तथा आदर्श गुण दिखाई देते है।विशेषता समाज एकसंध बनाने में प्रधानमंत्री जी की कुशलता विशेष उल्लेखनीय है।
सभी जात,पथ,पंथ,धर्मों में और संपूर्ण विश्व स्तर पर प्रधानमंत्रीजी की विश्वासार्हता विशेष उल्लेखनीय है।
और प्रधानमंत्री जी द्वारा मेरे इस लेख पर विचार होकर यथोचित कदम उठाने की अपेक्षा करता हुं।और वैश्विक कार्य के लिए भी यथोचित सहयोग प्राप्त होगा ऐसी आशा करता हुं।

अब देखते है…सामाजिक सौहार्दता पाने हेतु …
सनातन धर्म के बारें में।

सध्यस्थिती में सनातन शब्द की ओर देखने का समाज का नजरिया बहुत ही संकुचित बन गया है…अथवा कुछ असामाजिक तत्वों ने सनातन शब्द के प्रति अनेक गलतफहमियां जानबूझकर फैलाई है।इसपर सटीक विश्लेषण अती आवश्यक है।

सनातन मतलब ईश्वर निर्मीत… सभी सजीवों में एकतत्व देखने वाला,सभी की आत्मा एकसमान ही है और ईश्वर से एक धागे में ही बंधी हुई है,इस महान सिध्दांतों को स्विकारने वाला वास्तव।
जैसे सुर्य एक है…मगर किरणें अनेक।

सनातन मतलब …अनादी अनंत काल से चलता आया एक आदर्श सिध्दांत।सभी जीव ईश्वर की एक ही संतान ऐसा एक आदर्श परिवार मतलब सनातन धर्म यह अर्थ भी अभिप्रेत है।

आत्मा की खोज विज्ञान को संभव नहीं है।मगर सनातन धर्म का अध्यात्म शास्त्र आत्मा की खोज तथा आत्मा परमात्मा का मिलन करके,इंन्सान को पूर्णत्व देने में सक्षम है।

मगर अब सनातन का एक विपरीत अर्थ प्रचलित हुवा है…अथवा जानबुझकर किया गया है,किया जा रहा है।
चोटी रखने वाला,भगवे कपडे पहनने वाला,पूजा अर्चना करनेवाला ,माला पहननेवाला अथवा कर्मकांड में फँसा हुवा…छूत अछूत करनेवाला, संकुचित विचारधारा वाला,चातुर्वर्ण्य आश्रम में भेदभाव करनेवाला… ऐसा गलत अर्थ प्रचलित किया गया है।
वास्तव में,
ऐसा मर्यादित सनातन का अर्थ नही है…

जो एकसंध समाज को तोडऩे के लिए, जानबूझकर फैलाया गया…एक भ्रम है,एक शातिर दिमाग की कुटिल निती है।

मगर मुझे विश्वास है की जब समस्त मानवसमुह को,मानवताप्रेमीयों को ,विश्वमानव को,इसके सटीक विश्लेषण द्वारा सच्चाई समझाई जायेगी… तब सारा विश्व मानव… सनातन से फिर से जुड जायेगा।क्योंकि हर एक प्राणी की जडें ही सनातन से निगडित है…मगर आसुरीक सिध्दातों की और गलत धारणाओं की महानता बढाकर ईश्वरी सिध्दातों पर प्रहार करने के लिए ही…
सभी की सनातन की जडों को काटने का प्रयास अनेक सालों से चलता आया है।और आज भी चालू है।

मगर गलत धारणा जादा दिनों तक नहीं चलती है।समाज प्रबोधन द्वारा जब समाज एकसूत्र में बांधने का प्रामाणिक प्रयास होता है…तो…फिरसे एकसंध तथा शक्तिशाली और संपन्न समाज निर्माण होता है।

जो भगवान राम के,कृष्ण के समय में था।राजा विक्रमादित्य के समय में था,वही सत्य सनातन आज भी है।

जब समाज एकसुत्र के आधार पर चलता है तो सामाजिक उत्कर्ष भी होता है…और सामाजिक अध:पतन रोककर, एकसंध समाज द्वारा आर्थिक उन्नति के मार्ग भी आसान हो जाते है।और भौतिक तथा आध्यात्मिक सुख प्राप्ति द्वारा मनुष्य समुह आनंदित हो जाता है।

जो देवीदेवताओं के अवतार कार्यों में हुए थे,उस वक्त भी सनातन धर्म ही था।
राजा विक्रमादित्य जैसे अनेक महान शासकों ने भी यह प्रयास निरंतर जारी रखा था की सनातन संस्कृति ही सदैव अग्रसर रहे।
और राजा विक्रमादित्य तो ईश्वराधिष्ठीत समाजकारण पर ही भरौसा करते थे।आर्थिक संपन्नता भी विक्रमादित्य राजा ने कर दिखाई थी।
और इसिलए
सोने की चिडिय़ा वाला देश
ऐसी एक शक्तिशाली धारणा प्रचलित हो गई थी।

और आज भी एकसंध समाज द्वारा सोने की चिडिय़ा वाला संपन्न, सुसंस्कृत राष्ट्र का नवनिर्माण…
यही धारणा भी अपेक्षित है और सभी को स्विकारार्य भी है।

सभी का जीवन संपन्न, आंनंदी हो यह विचार और ऐसी विचारधारा सभी को पसंद ही आयेगी।इसका विरोध भले कौन कर सकेगा ?
मनभेद,मतभेद भी हो सकते है।जो विस्तृत चर्चा द्वारा समाप्त भी हो सकते है।

मगर बुध्दीभेद द्वारा सामाजिक अनर्थ फैलाना और एकसंध समाज पर प्रहार करना…यह धारणा भी गलत है,और आसुरीक सिध्दांतों को बल प्रदान करनेवाली भी है।जो आज बहुमात्रा में प्रचलित होती दिखाई दे रही है।
इसिलिए ऐसी गलत विचार धारा का सामुहिक – सामाजिक कृति द्वारा बहुमात्रा में खंडन होना भी जरूरी है।और हो सके तो समाज को तोडऩे की साजिश करनेवालों को कठोर शासन द्वारा दंडित किया जाए…ऐसा कानूनी प्रावधान होना भी अत्यावश्यक है।

आजादी के पहले हमारे देश को अनेक सालों तक धर्म द्रोही,आक्रमणकारियों द्वारा और ऐसी शक्तियों द्वारा हमें गुलाम बनाकर देश तोडऩे की भयंकर साजिश रची गई।
लुटारू, आक्रमणकारियों ने देश में गलत धारणाओं का बिजारोपण किया और हमारे आदर्श सिध्दातों पर और संस्कृति पर हमले किए गये,प्रहार किए।
मूर्तीभंजन द्वारा हमारे आत्मविश्वास पर ही मनोवैज्ञानिक दृष्टि से हमले करके,हमें मानसिक दृष्टि से गुलाम बनाने का विशेष प्रयास किया गया।

अनेक सालों से हमारे जड पर ही प्रहार किए गये।और परिणामस्वरूप आज हमारे देश में भयंकर अराजक स्वरूप तथा मानसिक गुलामी का वातावरण बन गया।
और दुर्दैव वश हमारे खून में ही शायद यह मानसिक गुलामी की मानसिकता अथवा बिमारी दूर दूर तक जा बैठी..जिसे काटने के लिए तथा संपूर्ण सामाजिक परिवर्तन के लिए आज सचमुच में राष्ट्रीय स्तर पर एक जबरदस्त क्रांती की लहर लाने की अती और तुरंत आवश्यकता बन बैठी है।
निरर्थक समाज वाद अथवा निधर्मी वाद यह मानसिक गुलामी ही परिणति है।
वास्तव में समाज वाद अथवा निधर्मी वाद यह तकलादू तो है ही,साथ ही सिध्दांतविहिन भी है।

समाज भयंकर गहरे चक्रव्यूह में आज फँस गया है…यह चक्रव्यूह तोडकर समाज को एकसंध बनाने के लिए… कानूनी तौर पर और सामाजिक तौर पर जादा प्रयास की जरूरत आ पडी है।

जैसे हमें … हमारे जडों से काटने का विस्तृत प्रयास किया गया, ठीक वैसे ही…
फिरसे अनेक विध मार्गों द्वारा जडों को जोडने का विस्तृत प्रयास अति आवश्यक और अती जरूरी भी हो गया है।
सामाजिक सौहार्द का आजका माहौल बडा ही विचित्र है,और उपरोक्तविषयानुसार और जटील बनता जा रहा है।और इसकी तोड संभव नही दिखाई दे रही है।

जो हमें ढूंढनी है।

आक्रमणकारियों ने हमारे ही लोगों को डरा धमकाकर अथवा लालच देकर हमसें और हमारे आदर्श सिध्दातों से सदा के लिए दूर किया है।और ऐसा प्रयास आज भी जारी है।दुर्देव वश हमारे ही लोगों का जो कुछ सालों पहले डर से या लालच से परिवर्तीत हो गये थे…
उनका ही शक्तिशाली हथियार बनाकर हमारे खिलाफ प्रचलित किया जा रहा है।

यह यथासंभव रूकना अनिर्वार्य है।बहुत जरूरी भी है।और इसके लिए यथोचित प्रयास की भी सख्त तथा तुरंत जरूरत भी है।

जो भूले भटके है उनके मन में हमारे प्रति, सनातन के प्रति भयंकर जहर भराया जा रहा है।बचपन से ही उनपर और उनके दिमाग पर ऐसा प्रहार किया जा रहा है की..वह हमसे केवल और केवल नफरत ही करें।हमसे केवल बैरभाव ही रखें।
झूट फैलाकर हमारे खिलाफ उनको भडकाया जा सके।

है तो सभी हमारे ही भाई।उन सभी के पूर्वज भी सनातनी ही थे।मगर यही बात वह भूल गये है।

तेजस्वी ईश्वर पुत्रों को संकुचितता वश गुलाम बनाया गया है।और यह सिलसिला आज भी जारी है।

यह भयंकर षड्यंत्र कौन और कैसे रोकेगा ?

इसकी काट खोजनी होगी।जड तक जाना पडेगा।सबसे पहले कठोर कानूनी सजा द्वारा और बाद में प्रेम से समझाबुझाकर असलियत बतानी होगी।
क्योंकि कानूनी सजा भी बडे बडों की आँखें खोल देती है।

काम आसान नहीं है, मगर तीव्र इच्छा शक्ति हो तो कठिन भी नहीं है।
जो सुह्रदयी है वह धिरे धिरे बदल जायेंगे।जो क्रूर है वह कानूनी डर से रास्ते पर आयेंगे।

और जो नहीं सुधरेंगे…
उनके साथ कृष्ण निती…

ईश्वर भी सबसे बलवान होता है।कभी कभी वह भी ऐसी अदृष्य निती अपनाता है की…
दूध का दूध और पाणी का पाणी हो जाता है।
बस्स्.. उस शक्ति पर श्रद्धा, विश्वास, प्रेम चाहिए।

और साथ में पूरजोर प्रयास का सामर्थ्य भी चाहिए।

और शायद आज ईश्वर भी संपूर्ण पृथ्वी पर भी परिवर्तन ही चाहता होगा।और ऐसी वैश्विक घटनाएं भी होती जा रही है।
सूर असुर का ध्रुवीकरण आरंभ हो गया है।

सनातन संस्कृति को विश्व के कोने कोने में पहुंचाने हेतु ,मेरा अनेक लेख लिखकर एक छोटासा प्रयास है।
इसे और शक्तिशाली बनाने के लिए आप सभी का संपूर्ण सहयोग तथा आत्मीय प्रेम की मुझे अपेक्षा है,जो पूरी होगी ऐसी आशा करता हुं।

वैश्विक स्तर पर अनेक भाषाओं में किताबें लिखना,अनेक कमर्शियल तथा कलात्मक, सांस्कृतिक फिल्मों का निर्माण करना, टीवी चैनलों में,अखबारों में प्रचार – प्रसार करना इसके लिए भारी मात्रा में धन की भी जरूरत होगी।कम से कम सौ करोड़ तो शुरू में लगेंगे ही।

इसके लिए और वैश्विक संगठन बनाकर कार्यरत करने के लिए…
परम श्रध्देय, प.पू.सिध्दयोगी श्री.लक्ष्मण बालयोगीजी मुझे निरंतर प्रेम तथा आत्मीय सहयोग दे रहे है..।
इसके लिए मैं स्वामिजी का आत्मा से आभार व्यक्त करता हुं।

स्वामिजी का राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सनातन का कार्य बहुत ही बेहतरीन है।
ईश्वर उनके सभी वैश्विक कार्यों में सफलता देगा..ऐसा विश्वास है।

अलौकिक शक्तियों की सहायता, सद्गुरु आण्णा का आशिर्वाद तथा अनेक देवीदेवताओं का आशिर्वाद तथा वरदहस्त मुझे मिला है जो जरूर अनेक उंचाईयों तक ले जायेगा यह विश्वास भी है।

अलौकिक सामर्थ्य प्राप्त होने पर भी लौकिक जगत में प्रयत्नों की पराकाष्ठा करना और यश खिंचकर लाना,इसका भी विशेष महत्व होता है।

आप सभी का प्रेम और निरंतर सहयोग भी मुझे आत्मबल बढाने में सहायक होता है।

मेरे लेख पर जो भी महात्मा टिप्पणी करना चाहता है अथवा मुझे सहयोग करना चाहता है तो कृपया मेरे निचले ई – मेल पर मेल जरूर करना।

My email ID…
vinodkumarm826@gmail.com

मेरे अनेक लेख अनेक भाषाओं में रूपांतरित करके,पढने के लिए, मेरे वेबसाइट की लिंक ओपन करके,भाषा बदल का ( Translesation) जो पर्याय दिया है..उसपर क्लीक किजिए।
शायद गुगल ट्रांसलेशन में कोई समस्या आयेगी तो मुझे इमेल किजिए।
मैं आपके समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करूंगा।

( लेख और भी लंबा होने की संभावना देखकर, लेखन को यही पर पूर्ण विराम देता हुं )

बाकी अगले लेख में।
हरी ओम्
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आप सभी का,
एक कट्टर सनातनी,
विनोदकुमार महाजन

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