स्वर्ग।!!!!!!!🕉
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जहाँ पावित्र्य होता है,मांगल्य होता है,श्रेष्ठत्व होता है,भव्यत्व-दिव्यत्व होता है,जहाँ दिव्य प्रेम होता है,जहाँ ऐश्वर्य होता है,जहाँ हमेशा शुभ ही होता है ,जहाँ अमृत होता है,और जहाँ शुध्द आत्माओं का विचरण होता है,जहाँ जन्म-मृत्यु का भय नही होता है,जहाँ देवत्व होता है,जहाँ सच्चाई-अच्छाई, नेकी ही सदा के लिए श्रेष्ठ होती है-वही स्वर्ग होता है।
कुछ ज्ञानेश्वर, तुकाराम, रामदास स्वामी, शंकराचार्य, अक्कलकोट स्वामी, गजानन बाबा जैसे पवित्र आत्मे जब स्वर्ग से सिधे पृथ्वी पर अवतीर्ण होते है,पंचमहाभूतों का देह धारण कर लेते है,विश्वोध्दार,समाजोध्दार,मानवता की जीत,ईश्वरी कानून की पुनर्स्थापना करने को,पृथ्वी का स्वर्ग बनाने के लिए अवतरित होते है…..
तब……
यहाँ का स्वार्थ, मोह,अहंकार, अधर्म का अंधियारा, पैसों का बाजार, मेरा तेरा जैसा कनिष्ठ नारकीय जीवन देखकर बहुत दुखी होते है।पछताते है।साक्षात अमृतसागर में नहाने वाले ईश्वरी आत्मे जब मनुष्यों के अंदर की गंदगी की वजह से जब परेशान होते है-परोपकारी जीवन की बजाए यहाँ का अत्यंत भयंकर और भयानक स्वार्थी इंन्सानों को देखकर पछताते है,दुखी होते है।
और मन में सोचते है-
अरे क्या यही इंन्सान है जो मैंने पैदा किया था,और नर का नारायण बनाने के लिए… इसे…
मनुष्य जन्म दिया था?
श्रेष्ठ मनुष्यों की बुध्दिमान योनी में भेजा था?पशुपक्षी भी इससे तो बेहतर है।उन्हे तो स्वार्थ, मोह,अहंकार, पाप का उन्माद कुछ भी नही है।
सिदासादा ईश्वरी कानून का जीवन जिते है यह जीव।कभी धोका देना भी सोचते नही।
और इंन्सान?
पैसों के बाजार में,स्वार्थ के बाजार में क्या कर रहा है इंन्सान???
अति अहंकार से उन्मत्त होकर, पाप का उन्माद फैलाकर पुण्यवंतो का जीना भी मुश्किल कर रहा है।मेरा पैसा-मेरा सोना-मेरा धन-मेरी जायदाद-मेरी प्राँपर्टी- मैं कमाता हुं।
अरेरेरे…सत्यानाश हो गया इंन्सानियत का,मानवता का।प्रेम-भाईचारे का।रिश्ते नातों का।
कहाँ दिव्य स्वर्ग और कहाँ यह नरक और नारकीय गंदा जीवन?
( शेष:- अगले लेख में)
हरी ओम।🕉🚩
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— विनोदकुमार महाजन।