मैं सत्य हुं।
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जी हाँ,मैं सत्य हुं।
असत्य ने सत्य को हमेशा प्रताडित किया है, पिडाएं दी है।
बारबार मुझे समाप्त करने की,मुझे दफनाने की,जमीन में गाडने की कोशिश की है।
फिर भी मैं मरा नही हुं,
फिर भी मैं जींदा ही हुं,और जींदा ही रहुंगा।
क्योंकि मेरा,याने की सत्य का रखवाला खूद भगवान होता है।
ठीक इसी तरह से मेरी,
सत्य की संस्कृति तबाह करने की,उसे जमीन में दफनाने की,जमीन में गाडने की बारबार कोशिशें की गई है।
आज भी मेरे ,मेरे संस्कृति के अनेक अवशेष जमीन के निचे,
दफनायें हुए है।
मैं नही भूला,नही भूल सकता,
उस अन्याय-अत्याचार को,उस प्रताडऩा को।
समय और नियती इंतजार कर रही है,प्रतिक्षा कर रही है,
मुझे मेरे संस्कृति को,मेरे आदर्शों को,मेरे सिध्दांतों को,
कुचलाने की,दफनाने की,
जहाँ जहाँ पर कोशिश हुई है,
मैं नही भूला उस समय को,
मैं नही भूला हूं उस अत्याचार को,और ..
उन भयंकर अत्याचारियों को।
मैं इंतजार में हुं ,
जमीन के निचे से उपर आकर,
फिर से मेरी संस्कृति को
“विश्वपटलपर”,…
फिर से पुनर्स्थापित करूं।
मैं इंतजार में हुं,
जिस जिसने भी मुझे दफनाने की कोशिश की है,
उनका प्रतिशोध लुं।
क्योंकि मैं सत्य हुं,धधगता सत्य,धधगती ज्वाला,
मैं धधगती आग हुं।
और मैं कभी भी मर नही सकता।
चाहे असत्य लाख बार कोशिश करें मुझे तबाह करने की,
मैं कभी भी तबाह नही हो सकता।
एक दिन फिर से जमीन के निचे से…
उपर उठकर, उपर आकर,
मेरा साम्राज्य निर्माण करने की मैं हमेशा क्षमता रखता हुं।
क्योंकि मैं सत्य हुं।
ना मुझे कोई मार सकता है,ना तबाह कर सकता है।
हाँ….
मगर आज….मैं….
भयंकर परेशान हुं,बेचैन भी हुं।
क्योंकि आज भी मुझे प्रताडित करने की लाख कोशिशें हो रही है,की जा रही है।
इसिलए आज मैं बहुत दुखी भी हुं।
मैं इसिलए इंतजार में हुं,
असत्य की सदा के लिए हार करके…
सत्य की जीत करने का,
संपूर्ण विश्व में…
सत्य का साम्राज्य निर्माण करने का।
और…।
सत्य कभी हारता नही है।हमेशा के लिए,
जीतता ही है।
और असत्य का नाटकीय, घिनौना मुखौटा फाडकर ही रहता है।
मैं सत्य हुं।
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— विनोदकुमार महाजन।